श्री लक्ष्मण सिंह जंगपाँगी, पद्म श्री

[मेरे लेख “Padma Awards from Uttarakhand” में श्री नारायण सिंह पांगती जी ने टिप्पणी की स्वर्गीय श्री लक्ष्मण सिंह जंगपाँगी को सन 1959 में पद्म श्री पुरस्कार प्रदान किया गया था। यह नाम मेरी सूची में नहीं था क्योंकि मैने भारत सरकार द्वारा जारी सूची से उत्तराखंड राज्य से नामांकित लोगों को लिया था। श्री जंगपाँगी को उस सूची में उड़ीसा राज्य से नामांकित दिखाया गया था। अब मैने इस सूची में सुधार कर दिया है। इस आलेख में श्री जंगपाँगी के बारे में और जांनकारी दी जा रही है। लेख व फोटो साभार श्री पांगती जी.– कमल]

भवान सिंह रावत-भीमताल द्वारा लिखी एक पुस्तक है Travails of Border Trade” जिसमें श्री जंगपाँगी जी पर पूरा एक अध्याय है। उसी अध्याय से के कुछ चुनिंदा अंश प्रस्तुत हैं।
laxman-singh-janpangi-with-president-rajendra-prasad-taking-padma-shri-award जनवरी 25, 1959 के दिन श्री लक्ष्मण सिंह जंगपाँगी, भारतीय ट्रेड एजेंट, गरतोक (पश्चिमी तिब्बत), अल्मोड़ा में अपने परिवार के साथ अपनी मुश्किल से अर्जित छुट्टियां बिता रहे थे। उसी दिन विदेश मंत्रालय का उत्तरी विभाग कार्यालय उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रहा था क्योंकि राष्ट्रपति ने उन्हे पद्मश्री पुरस्कार प्रदान करने का अनुमोदन कर दिया था। उसी दिन शाम को जब गणतंत्र दिवस 1959 की सम्मान सूची की घोषणा की गई तो उनके मित्रों और सहयोगियों ने राजनीतिक कार्यालय, सिक्किम से उनके ठिकाने के बारे में पूछताछ शुरू कर दी। अगले दिन से, उन्हें ढेरों बधाई संदेश/बधाई पत्र मिलने लगे। श्री एस दत्त, तत्कालीन विदेश सचिव, ने इस पद्म श्री के पुरस्कार श्री जंगपाँगी को दिये जाने को “वर्षो तक सबसे कठिन परिस्थितियों में उनकी निस्वार्थ और कर्मठ कार्य किये जाने को एक उपयुक्त मान्यता” दिये जाने के रूप में माना। इसी तरह अपने हार्दिक अभिवादन में पद्मश्री अप्पा बी पंत, राजनीतिक अधिकारी, सिक्किम, ने अपने पत्र में लिखा कि श्री जंगपाँगीजी को देश के लिये उनके किये गये बहुत कठिन और निस्वार्थ कार्यों के लिये देश ने पद्मश्री रूप में आभार और धन्यवाद प्रकट किया है। विदेश मंत्रालय में श्री जे.एस. मेहता, तत्कालीन निदेशक (चीन) और श्री एस. के. रॉय, विशेष अधिकारी सीमांत क्षेत्र (SOFA) ने श्री जंगपाँगी के कार्यों और बलिदानों को उजागर कर राष्ट्रीय मान्यता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्री एस. के. राय ने 1956 में पश्चिमी तिब्बत की यात्रा की थी और श्री जंगपाँगी और उनके दल के साथ उन्होने तकलाकोट, दरचिन, ग्यानिमा और गरतोक की व्यापारिक मंडियों का दौरा किया था। वे भारत सरकार के पहले वरिष्ठ अधिकारी थे जिन्होंने पश्चिमी तिब्बत की यात्रा की थी। उन्होंने पश्चिमी तिब्बत में काम करने की वास्तविक परिस्थितियों की जानकारी स्वानुभव से हासिल की थी। शिप्की-शिमला के रास्ते अपनी वापसी के दौरान श्री राय ने ट्रेड एजेंट (श्री जंगपांगी जी) और उनके कर्मचारियों को पश्चिमी तिब्बत जैसी जगह की विषम परिस्थितियों में काम करने तथा रहने को सुपर-मानव के रूप में वर्णित किया। श्री जे. एस. मेहता (जो बाद में विदेश सचिव बने) श्री जंगपाँगी के काम से परिचित थे और उन्होंने अपने बधाई पत्र में लिखा कि इस देश में बहुत कम ऐसे लोक सेवक हैं जो अपने कर्तव्यपालन में ऐसी कठिनाइयों को सहते हैं, जैसे आप अपने पश्चिमी तिब्बत के लिए वार्षिक यात्रा में सहते रहे हैं। मौसम की विषम परिस्थितियों और रहने की असुविधा होने के बावजूद आपने हमारे लोगों की मदद करने में आपने बहुत नाम कमाया है। किन्ही कारणवश, श्री मेहता ने श्री जंगपाँगी के योगदान की अधिक जानकारी, विशेष रूप से उनकी चेतावनी के बारे में कि चीन भारतीय क्षेत्र के अक्साई चिन में सड़क का निर्माण कर रहा है, पर अधिक प्रकाश नहीं डाल पाये।

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अधिष्ठापन समारोह 8 अप्रैल 1959 को हुआ, जब भारत के राष्ट्रपति ने श्री जंगपाँगी जी को पद्मश्री के तमगे से सम्मानित किया गया।laxman-singh-janpangi-with-jawahar-lal-nehru

पारिवारिक पृष्ठभूमि

श्री लक्ष्मण सिंह जंगपाँगी का जन्म 24 जुलाई,1905 को जोहार घाटी के बर्फू नामक स्थान पर राय साहब सोबन सिंह के घर हुआ था। वह एक अमीर परिवार से थे। उनके दादा फन्नू जंगपाँगी को ब्रिटिश सरकार ने उनके ब्रिटिश सरकार से सहयोग करने के एवज में “सर्टिफिकेट ऑफ डैगर” और पदक प्रदान किया था। उनके पिता सोबन सिंह को ब्रिटिश सरकार ने उनकी सेवाओं के लिये “राय साहब” की उपाधि प्रदान की थी।

श्री लक्ष्मण सिंह जंगपाँगी ने अपना मैट्रिकुलेशन और इंटरमीडियेट अल्मोड़ा से 1926 में पूरा किया। उन्होनें बी.ए. फाइनल तक इलाहाबाद विश्विद्यालय में अपनी पढ़ाई की।

सेवा कार्यकाल

श्री जंगपाँगी ने 1930 में ब्रिटिश ट्रेड एजेंसी, गरतोक (पश्चिमी तिब्बत) में एक अकाउंटेट के रूप में अपनी नौकरी शुरु की थी। उस समय ट्रेड एजेंसी में अकाउंटेंट का पद दूसरा सबसे बड़ा पद था। 1941-42 में उन्हें ट्रेड एजेंट के रूप में कार्यकारी पदोन्नति मिली। 1946 में उन्हें गरतोक में नियमित रूप से पदोन्नत कर ट्रेड एजेंट बना दिया गया और वह सन 1959 तक इस पद पर रहे जब उन्हें सिक्किम सीमा से लगे चुंबी घाटी के यातुंग नामक स्थान पर भारतीय ट्रेड एजेंसी में स्थानांतरित कर दिया गया। वह ऐसे एकमात्र भारतीय अधिकारी थे जिन्होंने पांच व्यापारिक मार्गों लिपुलेख पश्चिमी तिब्बत मार्ग, उंटा कुंगरी-बिंगरी मार्ग, चोर होती-नीती मार्ग, शिमला-शिपकी मार्ग और जोजीला-टागलुंगला मार्ग से यात्राऐं पूरी की थी।

** जून 1962 में तिब्बत की ट्रेड एजेंसी के बंद होने के तीन माह बाद वह सेवा-निवृत हुए।

** श्री जंगपाँगी का देहांत 1976 में हल्द्वानी में हुआ।

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